सादगी, विनम्रता और आवाज़ का जादू, रफी साहब का अनोखा अंदाज
हिंदी सिनेमा के सदाबहार गायक मोहम्मद रफी ने 24 दिसंबर 1924 को इस दुनिया में कदम रखा। उनकी 100वीं जयंती के अवसर पर आज भी उनकी गूंज हर संगीत प्रेमी के दिलों में बसी हुई है। रफी साहब की आवाज़ और उनके नेकदिल स्वभाव की कहानियां आज भी लोग गर्व से सुनाते हैं। वह सिर्फ एक गायक नहीं, बल्कि संगीत की आत्मा थे।
जब रफी साहब से कहा गया, “रीटेक देना होगा”
1973 की बात है, जब फिल्म ‘धर्मा’ की कव्वाली “राज की बात कह दूं तो…” की रिकॉर्डिंग हो रही थी। मशहूर संगीतकार ओमी ने इस किस्से को अपनी किताब ‘मोहम्मद रफी- ए गोल्डन वॉयस’ में साझा किया है। उन्होंने बताया कि रफी साहब से रीटेक की बात कहने पर वे थोड़े नाराज़ हो गए थे। यह उनके स्वभाव के विपरीत था। जब ओमी ने सख्ती दिखाई और पैकअप कह दिया, तो रफी साहब बिना कुछ बोले चले गए।
अगले दिन रफी साहब ने दिखाई अपनी विनम्रता
अगली सुबह रफी साहब ने ओमी के घर आकर माफी मांगी और कहा, “क्या मैंने आपको नाराज कर दिया?” उन्होंने अपने अमेरिका से लाए स्पीकर्स पर कव्वाली सुनी और पूछा कि क्या इसे फिर से रिकॉर्ड करना है। रफी साहब की यह सादगी और विनम्रता अद्वितीय थी।
मोहम्मद रफी: एक मिसाल
मोहम्मद रफी की फीस उस समय मात्र 3,000 रुपये थी, लेकिन उन्होंने 20,000 रुपये के स्पीकर ओमी को उपहार में दे दिए। उनकी यह दरियादिली उन्हें महानतम कलाकार बनाती है।
रफी साहब की आवाज़ और उनकी कहानियां हमेशा संगीत प्रेमियों को प्रेरणा देती रहेंगी। उनकी 100वीं जयंती पर उनके योगदान को याद करना हर संगीत प्रेमी का सम्मान है।