जहरीली हवा से जूझती जिंदगी -विजय गर्ग
देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब या यों कहें कि जानलेवा बनती जा रही है। राजधानी के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 के पार पहुंच गया है। शीर्ष न्यायालय भी दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण को लेकर गंभीर है और उसने सख्त उपाय करने को कहा है। केंद्र सरकार से लेकर दिल्ली और आसपास के राज्यों की सरकारें अलग-अलग दावे करती रही हैं, लेकिन इससे से प्रदूषण स्तर में कोई बड़ी राहत नजर नहीं आती है। भले ही इस गंभीर होती समस्या से पार पाने के लिए दिल्ली सरकार कई उपाय किए और प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए निर्देश जारी किए, लेकिन कारगर साबित नहीं हो पा रहे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की ताजा रपट बताती है कि विश्व स्तर पर हवा इस हद तक जहरीली चुकी है कि हमारी सांसों में धीमा जहर घुल रहा है। फेफड़ों ‘प्रदूषणकारी तत्त्वों की तह लग रही है, जो धीमी मौत’ का एक बड़ा कारण साबित हो सकता है।
डब्लूएचओ की रपट बताती है कि प्रतिवर्ष लगभग पचास लाख लोग जहरीली हवा के चंगुल में आकर समय से पहले जिंदगी को अलविदा कह देते हैं। पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था ‘ग्रीनपीस’ ‘ की एक रपट के मुताबिक राजधानी दिल्ली दुनियाभर में सभी देशों की राजधानियों में सबसे ज्यादा प्रदूषित है। सवाल है कि पिछले कुछ सालों से लगातार इस महासंकट से जूझ रही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को कोई स्थायी समाधान की रोशनी क्यों नहीं मिलती ? सरकारें और राजनेता एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने के बजाय समाधान के लिए तत्पर क्यों नहीं होते ?
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट में पीएम 2.5 के आधार पर बताया गया है कि दुनिया ‘के सबसे 15 शहरों में 12 शहर भारत के हैं। वायु गुणवत्ता पर रपट के मुताबिक दुनिया के 30 सबसे अधिक प्रदूषित शहर भारत में हैं, जहां पीएम 2.5 की सालाना सघनता सबसे ज्यादा है। “बीएमजे ” के अध्ययन में पाया गया है प्रदूषण वजह से भारत में हर साल कई कई लोगों की मौत होती है। पीएम यानी ‘पार्टिकुलेट मैटर’ एक किस्म है। इसके कण बेहद सूक्ष्म होते हैं जो हवा में बहते हैं। पीएम 2.5 या पीएम 10 हवा में कण ‘आकार को बताता है। वायु में मौजूद यही कण हवा के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर खून में घुल जाते हैं। इससे शरीर में कई तरह की बीमारियां जैसे अस्थमा और सांसों की दिक्कत हो सकती है। गौर करने वाली बात यह है कि आबादी के लिहाज से सबसे ज्यादा नुकसान भारत को ही होता है, लिहाजा उसे अपनी जिम्मेदारी समझते हुए तत्काल कुछ सार्थक और ठोस उपाय करने होंगे।
दुनिया में इस समय सबसे ज्यादा बीमारियां पर्यावरण प्रदूषण की वजह से हो रही हैं। मलेरिया, एड्स और तपेदिक से प्रति वर्ष जितने लोग मरते हैं, उससे कहीं ज्यादा लोग प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से मर जाते हैं। बहरहाल, यही सवाल उठता है कि वायु प्रदूषण से हर वर्ष होने वाली मौत को रोकने के लिए सरकार की तरफ से क्या कदम उठाए जा रहे हैं? दशकों से यह बात सरकार और समाज को मालूम है, लेकिन इसको लेकर दोनों उदासीन बने हुए हैं। ऐसा लगता है कि लोग अपने त्रासदीपूर्ण भविष्य को लेकर पूरी तरह से बेखबर हैं। वास्तव में वायु प्रदूषण की समस्या इतनी जटिल होती जा रही है।
कि भविष्य अंधकारमय प्रतीत हो रहा है। वस्तुतः आज मनुष्य भोगवादी जीवन शैली का इतना आदी और स्वार्थी हो गया है कि अपने जीवन के मूल आधार वायु को ही दूषित कर रहा है। नैतिकता और कर्तव्य सब भूल रहा है। भौतिकतावादी जीवन शैली और विकास की अंधी दौड़ में आज मनुष्य यह भी भूल गया है कि जीवन के लिए स्वच्छ वायु कितनी आवश्यक है।
बढ़ते वाहनों और कल-कारखानों से निकलते धुएं ने वायु को, वृक्षों की कटाई ने जीवनदायिनी गैसों को और मनुष्यों द्वारा फैलाई जा रही गंदगी ने जल को इस तेजी के साथ प्रदूषित किया है कि अब दुगनी गति से बीमारियां फैल रही है। यह सिलसिला आज भी जारी है। मानवीय सोच और विचारधारा में इतना ज्यादा बदलाव आ है कि किसी को भविष्य की कोई चिंता नहीं है। कोई दो राय नहीं है कि आज मनुष्य प्रकृति को रिक्त करता चला जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप पर्यावरण असंतुलन के कारण भूमंडलीय ताप, अम्लीय वर्षा, बर्फीली चोटियों का पिघलना, सागर के जल स्तर का बढ़ना, मैदानी नदियों का सूखना, उपजाऊ भूमि का घटना और रेगिस्तानों का बढ़ना आदि विकट परिस्थितियां पैदा होने लगी है। यह सब मनुष्यों की लापरवाही का नतीजा है। अफसोस की बात है कि हम फिर भी चेत नहीं हो रहे हैं।
नतीजा भारत में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। चाहे केंद्र हो या फिर राज्य सरकारें, कोई भी प्रदूषण से निपटने के लिए गंभीर नहीं दिखता। जाहिर है, प्रदूषण से लड़ने के लिए दीर्घकालीन नीतियां बनाने की जरूरत है, वहीं लोगों को अपने स्तर पर वे सभी जतन करने की आवश्यकता है, जो हवा को जहरीली होने से रोकें। यह ठीक है कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई कदम उठाए थे। फिर भी वायु प्रदूषण से निपटने में हम फिसड्डी साबित हुए। ऐसे में भारत की जिम्मेदारी बड़ी और ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो जाती है, क्योंकि हमें विकसित और विकासशील दोनों ही प्रकार के देशों में किए जा रहे उपायों को अपनाना पड़ेगा।
दअरसल, वायु प्रदूषण ऐसा मुद्दा है जो पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है और इसे बिना आपसी सहमति और ईमानदार प्रयास के हल नहीं किया जा सकता है। वायु प्रदूषण से निपटने के लिए तात्कालिक कार्रवाई के बजाय निरंतर प्रयास करने की जरूरत है। स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाने, वाहनों की संख्या को नियंत्रित करने और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने जैसे उपाय दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकते हैं। पराली जलाने की समस्या को हल करने के लिए किसानों को बेहतर तकनीक और सबसिडी प्रदान करना आवश्यक है, ताकि वे अधिक पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को अपनाएं। इसके साथ ही निर्माण स्थलों पर प्रदूषण नियंत्रण उपायों का सख्ती से पालन और औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कड़े कानूनों की आवश्यकता है। एक व्यवस्थित निगरानी तंत्र से पूरे वर्ष वायु गुणवत्ता का मूल्यांकन करना जरूरी है ताकि प्रदूषण के स्तर समय रहते काबू में रखा जा सके। वायु प्रदूषण का मतलब केवल पेड़-पौधे लगाना ही नहीं है बल्कि, भूमि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण को भी रोकना है। तभी कुछ ठोस नजर आ सकेगा। वक्त कुछ करने का है, न कि सोचने का।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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