रंजना मिश्रा(BREAKING NEWS EXPRESS)
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आज की युवा पीढ़ी में धर्म और विज्ञान के प्रति एक अजीब तरह का रवैया देखने को मिल रहा है। कई युवा धार्मिक मान्यताओं का खंडन करके स्वयं को आधुनिक और विज्ञान प्रेमी सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि धर्म अंधविश्वासों से भरा हुआ है और विज्ञान ही सत्य है। युवा पीढ़ी में धर्म और विज्ञान को लेकर जो उलझन देखी जा रही है, उसके पीछे कई कारण हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया की वजह से युवाओं के पास बहुत सारी जानकारी होती है, लेकिन हर जानकारी सही नहीं होती। कई बार युवा गलत सूचनाओं के आधार पर निर्णय ले लेते हैं। तेज रफ्तार जीवनशैली, करियर की महत्वाकांक्षाएं और बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा ने युवाओं को धार्मिक अनुष्ठानों से दूर कर दिया है। दरअसल आज की युवा पीढ़ी काफी व्यस्त रहती है। करियर, शिक्षा और सामाजिक गतिविधियों में इतना अधिक समय लग जाता है कि उनके पास धार्मिक व पारंपरिक त्योहारों को मनाने के लिए पर्याप्त समय नहीं बचता। पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव भी युवाओं पर काफी गहरा है। इसलिए वे पश्चिमी त्योहारों और जीवनशैली को अधिक आकर्षक मानते हैं। कई युवाओं को धार्मिक रीति-रिवाज पुराने और बेमानी लगते हैं। वे इन रीति-रिवाजों के पीछे के कारणों को समझने में रुचि नहीं दिखाते। कई बार युवाओं पर अपने दोस्तों और समाज के अन्य लोगों के समान दिखने का भी दबाव होता है। इसलिए वे धार्मिक गतिविधियों में शामिल होने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि उनके दोस्त उनका मजाक उड़ाएंगे। आज की युवा पीढ़ी श्राद्ध के महत्व को भी नहीं समझती, क्योंकि उन पर आधुनिकता का प्रभाव है। श्राद्ध का अर्थ है पितरों का श्रद्धापूर्वक स्मरण करना और उन्हें पिंडदान देकर तृप्त करना। यह एक ऐसा अनुष्ठान है, जिसके माध्यम से हम अपने पूर्वजों के आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और उनका आभार व्यक्त करते हैं। श्राद्ध हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है और हमें अपने पूर्वजों के साथ एक आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस कराता है। श्राद्ध परिवार और समाज को एक साथ लाता है और सामाजिक बंधनों को मजबूत करता है। श्राद्ध करने से आत्मिक शांति मिलती है। आज के युवाओं को सनातन परंपराओं से जोड़ने में कई चुनौतियां हैं। श्राद्ध के अलावा भी कई ऐसी परंपराएं हैं, जिनके बारे में युवा पीढ़ी कम जानती है या उन्हें अपने जीवन में अपनाने में हिचकिचाती है। अधिकांश युवाओं को पूजा-पाठ और मंत्रोच्चारण के अर्थ और महत्व के बारे में पता नहीं होता है। उन्हें लगता है कि यह समय की बर्बादी है। कई त्यौहारों के पीछे की कहानियां और उनका महत्व युवाओं को नहीं पता होता है। वे त्योहारों को केवल छुट्टियों के रूप में देखते हैं। ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाओं के बारे में भी युवाओं में गलत धारणाएं होती हैं। अधिकांश युवा व्रत और उपवास को कठोर नियम मानते हैं और उन्हें अपने जीवन में शामिल नहीं करते हैं। गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व युवाओं को समझ नहीं आता है। वे गुरु के मार्गदर्शन को महत्व नहीं देते हैं। सनातन धर्म में बताए गए आचार-व्यवहार जैसे सत्य बोलना, बड़ों का आदर करना आदि को युवा पीढ़ी अक्सर नजरअंदाज करती है। ज्योतिष और वास्तु शास्त्र जैसे विषयों को युवा अंधविश्वास मानते हैं। इन समस्याओं के पीछे के कुछ कारण है। दरअसल आधुनिक जीवनशैली, तकनीक और पश्चिमी संस्कृति का बढ़ता हुआ प्रभाव युवाओं को सनातन धर्म के सिद्धांतों और भारतीय संस्कृति से दूर कर रहा है। स्कूलों और कॉलेजों में धार्मिक शिक्षा का अभाव है, जिसके कारण युवाओं को धर्म और संस्कारों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होती है। विज्ञानवाद ने युवाओं को तर्क और तथ्यों पर आधारित निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया है, जिससे वे धार्मिक अनुष्ठानों को अंधविश्वास मानते हैं। समाज में धार्मिक अनुष्ठानों को लेकर कई तरह के मिथक और अंधविश्वास फैले हुए हैं, जिसके कारण युवाओं को इन अनुष्ठानों से दूर रहने के लिए प्रेरित किया जाता है।
आजकल समाज में एक धारणा बनती जा रही है कि विज्ञान को मानने वाला व्यक्ति ही बुद्धिमान और आधुनिक होता है। आज की युवा पीढ़ी द्वारा धार्मिक मान्यताओं का खंडन करके स्वयं को आधुनिक सिद्ध करना गलत है, बल्कि उन्हें धर्म और विज्ञान दोनों का सम्मान करना चाहिए और दोनों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि विज्ञान और धर्म एक-दूसरे के पूरक हैं। धर्म और विज्ञान दोनों ही मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलू हैं। इसलिए युवाओं के मन में धर्म और विज्ञान दोनों को जानने और समझने की जिज्ञासा होनी चाहिए। उन्हें दोनों के बारे में खुले मन से सोचना चाहिए और दोनों ही विषयों का गहराई से अध्ययन करना चाहिए। सनातन के धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं को सही ढंग से समझने के लिए युवाओं को धार्मिक शिक्षा लेनी चाहिए, लेकिन साथ ही उन्हें अंधविश्वास से दूर रहना चाहिए। उन्हें तर्क और तथ्यों पर आधारित निर्णय लेने चाहिए। सनातन धर्म के मूलभूत तत्वों को आत्मसात करके और विज्ञान की उपलब्धियों का उपयोग करते हुए, युवाओं को समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए काम करना चाहिए। यदि युवा पीढ़ी सनातन धर्म और विज्ञान दोनों को समझकर सामंजस्य स्थापित करेगी तो इससे युवाओं में एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होगा। जिससे समाज में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिल सकते हैं। धर्म और विज्ञान दोनों का अध्ययन करके, आज के युवा तनाव और चिंता से मुक्त होकर इस संसार और जीवन की संपूर्णता को समझ सकेंगे। जहां एक ओर विज्ञान भौतिक दुनिया को समझने में मदद करता है, वहीं दूसरी ओर सनातन धर्म का ज्ञान आध्यात्मिक विकास और जीवन के अर्थ को समझने में मदद करता है। इससे युवाओं में तार्किकता और आस्था का एक अच्छा संतुलन स्थापित होगा। वे किसी भी बात को मानने से पहले उस पर विचार करेंगे और तर्क करेंगे। धर्म और विज्ञान दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित होने से समाज में सद्भाव और एकता बढ़ेगी। साथ ही युवाओं में नवाचार और विकास की भावना भी बढ़ेगी। वे विज्ञान के ज्ञान का उपयोग करके धार्मिक मूल्यों को बढ़ावा देने के नए तरीके खोजेंगे। युवाओं में मानवतावाद का भाव बढ़ेगा। वे सभी जीवों के प्रति करुणा और दया का भाव रखेंगे। युवाओं में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी। वे धार्मिक ग्रंथों में दिए गए पर्यावरण संरक्षण के संदेशों को समझेंगे और उनका पालन करेंगे। धार्मिक ग्रंथों में वर्णित तथ्यों का सही अर्थ समझने से युवाओं में अंधविश्वास कम होगा। विज्ञान के साथ-साथ युवा आध्यात्मिक विकास की ओर भी ध्यान देंगे। इससे उन्हें मानसिक शांति और संतुष्टि मिलेगी। कुल मिलाकर यदि युवा पीढ़ी सनातन धर्म और विज्ञान दोनों को समझकर सामंजस्य स्थापित करेगी तो समाज एक सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ेगा। स्कूलों और कॉलेजों में सनातन धर्म की शिक्षा देकर, युवाओं को धर्म और संस्कारों के बारे में जागरूक किया जा सकता है। धर्मगुरुओं को भी युवाओं को सनातन धर्म की सही जानकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
सनातन धर्म सदियों से मानव जीवन का मार्गदर्शन करता आया है। यह हमें सही रूप से जीवन जीने का तरीका बतलाता है। सनातन धर्म में जीवन के हर पहलू पर गहरा चिंतन किया गया है। इसमें वैज्ञानिक तथ्यों के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान का भी समावेश है। सनातन धर्म में प्रकृति को देवी के रूप में पूजा जाता है। यह हमें प्रकृति के साथ सद्भाव बनाए रखने और पर्यावरण का संरक्षण करने का संदेश देता है। सनातन धर्म में योग और ध्यान को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। आधुनिक विज्ञान भी अब योग और ध्यान के लाभों को स्वीकार कर रहा है। आयुर्वेद भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। इसके प्राकृतिक उपचारों को पश्चिमी दवाओं के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। वेद और उपनिषद में ब्रह्मांड और मानव जीवन के रहस्यों के बारे में गहरा ज्ञान दिया गया है। इन ग्रंथों में कई वैज्ञानिक तथ्यों का उल्लेख मिलता है, जो आधुनिक विज्ञान द्वारा सिद्ध किए जा चुके हैं। सनातन धर्म का कोई निश्चित संस्थापक नहीं है। यह हजारों सालों से विकसित होता आया है। सनातन धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। इसका अर्थ यह है कि इस पूरे ब्रह्मांड को संचालित करने के लिए विभिन्न देवी-देवताओं के रूप में शक्तियों का विभाजन किया गया है। सनातन धर्म पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत में विश्वास रखता है। वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि सनातन धर्म के प्रमुख ग्रंथ हैं। सनातन धर्म में यज्ञ, पूजा, त्योहार आदि कई तरह के अनुष्ठान होते हैं। सनातन धर्म बहुत ही लचीला धर्म है। इसमें कई तरह की मान्यताएं और परंपराएं शामिल हैं, लेकिन यह किसी भी मान्यता और परंपरा को मानने के लिए व्यक्ति को बाध्य नहीं करता। यह धर्म बहुत ही विशाल और विस्तृत है। व्यक्ति अपने विवेक और रुचि के अनुसार इसके किसी भी अंग का पालन कर सकता है।
विज्ञान तथ्यों और प्रयोगों पर आधारित है। यह हमें दुनिया को समझने और उसमें सुधार करने में मदद करता है। विज्ञान की मदद से हमने कई बीमारियों का इलाज ढूंढा है, संचार के नए तरीके विकसित किए हैं और अंतरिक्ष की खोज की है। विज्ञान ने हमारे जीवन को कई तरह से बदल दिया है। आज हम मोबाइल फोन, कंप्यूटर और इंटरनेट का उपयोग करते हैं। इन सभी का विकास विज्ञान की बदौलत ही संभव हुआ है। विज्ञान ने चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति ला दी है, जिससे आज कई गंभीर बीमारियों का इलाज संभव हो सका है। विज्ञान ने धार्मिक विश्वासों पर भी गहरा प्रभाव डाला है। युवा पीढ़ी अब धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखती है। वे उन मान्यताओं को स्वीकार करते हैं, जो तर्क और तथ्यों के अनुरूप होती हैं। ब्रह्मांड विज्ञान के क्षेत्र में हुई खोजों ने धार्मिक विश्वासों को चुनौती दी है। युवा पीढ़ी ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास के बारे में वैज्ञानिक सिद्धांतों में अधिक विश्वास करती है। जीवन की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिक सिद्धांतों ने धार्मिक मान्यताओं को प्रभावित किया है। युवा पीढ़ी अब जीवन की उत्पत्ति के बारे में धार्मिक व्याख्याओं की बजाय वैज्ञानिक व्याख्याओं को अधिक महत्व देती है।
सनातन धर्म और विज्ञान के बीच एक संवाद स्थापित करना आवश्यक है, ताकि युवा पीढ़ी एक अधिक संपूर्ण और संतुलित जीवन जी सके। दोनों को एक-दूसरे के विरोधी के रूप में नहीं, बल्कि पूरक के रूप में देखना चाहिए। धार्मिक शिक्षा में विज्ञान को शामिल करने से युवाओं को धर्म और विज्ञान दोनों को समझने में मदद मिल सकती है। विज्ञान की शिक्षा में धर्म के मूल्यों जैसे करुणा, सहिष्णुता और जिज्ञासा को शामिल करने से युवाओं को एक अधिक संपूर्ण दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिल सकती है। सनातन धर्म और विज्ञान दोनों ही ज्ञान के अलग-अलग आयाम हैं। सनातन धर्म की आध्यात्मिकता और विज्ञान की तार्किकता को एक साथ लाकर, हम मानव जीवन को और अधिक समृद्ध बना सकते हैं। वहीं विज्ञान के माध्यम से हम सनातन धर्म के मूल्यों को दुनिया भर में फैला सकते हैं। सनातन धर्म में कई ऐसे विचार हैं, जो विज्ञान के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं। दरअसल सनातन धर्म और विज्ञान दोनों ही मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमें दोनों को एक साथ लेकर चलने की जरूरत है। दोनों को एक साथ लेकर चलने से हम एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
सनातन धर्म में त्योहारों का विशेष महत्व है। त्योहार हमारे जीवन को नई ऊर्जा और उल्लास से भर देते हैं। ये हमें आध्यात्मिक विकास, सामाजिक एकता और प्रकृति के साथ जुड़ाव का अवसर प्रदान करते हैं। त्योहारों के माध्यम से हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखते हैं। सनातन धर्म के अधिकांश त्योहारों में असत्य पर सत्य की विजय और बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश निहित होता है। त्योहार हमारे परिवार और समाज के लोगों को एक साथ लाते हैं। ये रिश्तों को मजबूत करते हैं और सामाजिक बंधन को बढ़ावा देते हैं। कई त्योहार प्रकृति की घटनाओं से जुड़े होते हैं जैसे कि ऋतु परिवर्तन, फसलों के मौसम आदि से। ये हमें प्रकृति के साथ एकात्म होने का संदेश देते हैं। त्योहारों के माध्यम से ज्ञान का प्रसार होता है और धार्मिक ग्रंथों की कहानियां व शिक्षाएं आम लोगों तक पहुंचाई जाती हैं। त्योहारों के माध्यम से कई तरह के कर्मकांड किए जाते हैं, जिनसे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। दशहरे में हम हर साल रावण का पुतला जलाकर बुराई का अंत करने का प्रयास करते हैं। दीपावली का त्योहार रावण पर विजय और भगवान राम की अयोध्या वापसी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह त्योहार हमें अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। होली का त्योहार होलिका दहन के साथ मनाया जाता है। होलिका एक राक्षसी थी, जिसने भगवान विष्णु की भक्ति करने वाले बालक प्रह्लाद को मारने की कोशिश की थी। होलिका का दहन भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा ने महिषासुर जैसे राक्षसों का वध करके बुराई का नाश किया था। ये त्योहार यह शिक्षा देते हैं कि हमें हमेशा सत्य और न्याय के लिए लड़ना चाहिए, भले ही हमें इसके लिए संघर्ष करना पड़े। हमें कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और दृढ़ता बनाए रखनी चाहिए। ये त्योहार हमें सिखाते हैं कि जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन हमें हमेशा आशावादी रहना चाहिए और बुराई पर अच्छाई की विजय का विश्वास रखना चाहिए।
युवाओं को सनातन धर्म के त्योहारों और श्राद्ध जैसे अनुष्ठानों के महत्व को सरल और प्रभावी तरीके से समझाना होगा और उन्हें इनमें शामिल होने के लिए प्रेरित करना होगा।। इनके बारे में जानकर युवा अपनी जड़ों से जुड़ेंगे और अपनी संस्कृति को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे। हर त्योहार के पीछे कोई न कोई नैतिक मूल्य जुड़ा होता है। ये मूल्य युवाओं के चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सनातन धर्म के त्योहारों में आध्यात्मिकता का बहुत महत्व है। इनके बारे में जानकर और इनमें शामिल होकर युवाओं का आध्यात्मिक विकास होगा और वे जीवन के गहरे अर्थ को समझ पाएंगे। कई त्योहारों में समाज सेवा का भाव छिपा होता है। जैसे दान करना, जरूरतमंदों की मदद करना आदि। इससे युवाओं में समाज सेवा की भावना जागृत होगी। त्योहारों के दौरान लोग एक-दूसरे से मिलते हैं। इससे सामाजिक एकता और भाईचारा बढ़ता है। सनातन धर्म के त्योहारों में भरपूर मस्ती और मनोरंजन होता है। इससे तनाव कम होता है और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। त्योहारों और रीति रिवाजों से जुड़ाव पैदा करने के लिए युवाओं को बचपन से ही धार्मिक शिक्षा दी जानी चाहिए। उन्हें धार्मिक ग्रंथों, कहानियों और रीति-रिवाजों के बारे में बताया जाना चाहिए। त्योहारों को मनाने के तरीकों में बदलाव लाकर उन्हें युवाओं के लिए अधिक आकर्षक बनाया जा सकता है। धार्मिक स्थलों को आधुनिक सुविधाओं से युक्त करके युवाओं को वहां जाने के लिए आकर्षित किया जा सकता है, ताकि वे इन स्थलों के महत्व को समझ सकें। युवाओं का मार्गदर्शन करने के लिए, सनातन धर्म के विद्वानों को उनसे जुड़ने के नए तरीके खोजने होंगे। उन्हें आज की युवा पीढ़ी की भाषा में ही बात करनी होगी और उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास करना होगा, तभी वे युवाओं के मन में चल रही दुविधाओं और शंकाओं का सही समाधान कर पाएंगे। युवाओं को सनातन धर्म का सही मर्म समझाने के लिए पूरे समाज का सहयोग मिलना बहुत आवश्यक है।
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