अशोक अंजुम की ग़ज़लों का लोकार्पण
अलीगढ़ (उ प्र ) वरिष्ठ व्यंग्य कवि, ग़ज़लकार अशोक ‘अंजुम’ के नवीनतम ग़ज़ल संग्रह “तेरा मेरा रिश्ता क्या” का लोकार्पण रायल कावेरी, स्वर्ण जयंती नगर में संपन्न हुआ। अशोक अंजुम की चुनी हुई ग़ज़लों के इस संग्रह का संपादन कानपुर की विदुषी लेखिका डॉ. सफलता सरोज ने किया है। डॉ. सफलता सरोज इसके पूर्व पद्मभूषण नीरज, डॉ. कुंअर बेचैन आदि की किताबों पर भी काम कर चुकी हैं। लोकार्पण के अवसर पर अशोक ‘अंजुम’ की ग़ज़लों पर बोलते हुए वरिष्ठ शायर डॉ.मुजीब शहज़र ने कहा कि अशोक अंजुम की ग़ज़लों में बुनावट और कहन का बेहतरीन संतुलन है, इसी कारण उनकी ग़ज़लों के शे’र लोगों के दिलों तक सीधे पहुंच बनाते हैं। उदाहरण के रूप में डॉ. मुजीब ने अशोक अंजुम के अनेक शेर प्रस्तुत किये।
इस अवसर पर कवयित्री भारती शर्मा ने कहा कि अशोक अंजुम की ग़ज़लें सहजता से बड़ी-बड़ी बातें कह जाती हैं यही एक अच्छे रचनाकार की निशानी होती है।
विशेष रूप से उपस्थित पूर्व विधायक विवेक बंसल जी ने कहा कि कवि शायर बहुत संवेदनशील होता है भाई अशोक ‘अंजुम’ में ये संवेदना भरपूर है।
अशोक अंजुम ने अपनी ग़ज़लों की रचना प्रक्रिया पर बोलने के साथ ही कई चुनिंदा ग़ज़लों का पाठ किया-
सांसों से यूं कभी निभाना पड़ता है
ज़िंदा होकर भी मर जाना पड़ता है
तेरे मेरे बीच में ऐसी दूरी है
मैं तेरा हूं रोज़ बताना पड़ता है
उपस्थित साहित्यकारों ने डॉ.पूनम शर्मा तथा विद्यार्णव शर्मा को भी उनके बेटे दिव्यनिधि की फ़िल्म ‘लापता लेडीज’, जिसके कि संवाद तथा एक गीत दिव्यनिधि ने लिखा है, के ऑस्कर में नॉमिनेट होने पर बधाइयां दीं।इसके पश्चात एक काव्य-संध्या का आयोजन हुआ, जिसमें डॉ मुजीब शहजर ने ये पंक्तियां पढ़कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया-
“सांस भी अपनी मर्ज़ी से लेता नहीं
और ख़ुद को समझता ख़ुदा आदमी”
वरिष्ठ कवयित्री भारती शर्मा ने इन पंक्तियों से श्रोताओं का मन मोह लिया-
इस जन्म और मरण के पशोपेश में
कर्म को सींचिए धर्म के वेश में
त्याग कर भ्रम सभी गूंजता बस रहे
सत्य शिव सुंदरम सारे परिवेश में
डॉ हरीश बेताब ने इन पंक्तियों से सांप्रदायिक सौहार्द्र का परिचय दिया-
“जब हर हिंदू का सीना स्वाभिमान से तब तन जाता है ,
जब भी कोई मुसलमान अब्दुल हमीद बन जाता है “
सशक्त युवा ग़ज़लकार नितिन नायाब ने पढ़ा-
यूं तो मेरे दम ज़्यादा थे लेकिन
तेरी खातिर सस्ता भी हो सकता था
डॉ. दौलत राम शर्मा ने अपने सुमधुर काव्य पाठ से खूब तालियां बटोरी-
“ना मिटा नाम तेरा दिल से मिटा कर देखा
याद तू और भी आया जो भुला कर देखा”
सुधांशु गोस्वामी की इस रचना ने सभी को प्रभावित किया –
“कभी तितली कभी भंवरों कभी चिड़ियों ने ये बोला
लिपटकर आ रही तन से हवा ने राज ये खोला
मिरे महबूब ने नग़मे मिरे जब गुनगुनाए हैं
तभी बादल ये छाए हैं तभी बादल ये छाए हैं।”
युवा कवयित्री गीतू माहेश्वरी ने सुनाया –
जपते हनुमत यही नाम मिल जाएंगे
उनके चरणों में सब धाम मिल जाएंगे
ध्यान से जब भी देखोगे माँ बाप को
घर मेँ बैठे सियाराम मिल जाएंगे
डॉ मनीषा मणि ने सुनाया-
“इसलिए कविता में संवेदना दिखती है
क्योंकि यह दोषियों के हाथों नहीं बिकती है”
पंकज भारद्वाज ने सुनाया-
“कभी लिखी थी जो साथ मिल के
ग़ज़ल अकेले ही गा रहे हैं
बिखर गए हैं रदीफ जिसके
उसे दोबारा सजा रहे हैं”
कार्यक्रम का सरस संचालन सुधांशु गोस्वामी ने किया। विद्यार्णव शर्मा जी तथा डॉ पूनम शर्मा ने अंत में सभी का आभार व्यक्त किया।
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