साहित्य, कला, संस्कृति में नए आयाम खोले हैं डिजिटल युग ने - पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव आज़मगढ़ साहित्य महोत्सव में पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव ने दिया व्याख़्यान, डिजिटल युग में साहित्य पर की परिचर्चा डिजिटल युग में साहित्य देशज से भूमंडलीकरण की ओर बढ़ रहा है। साहित्य, कला, संस्कृति सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं में डिजिटल युग ने महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं। साहित्यकार, प्रकाशक, संपादक से लेकर पाठक तक सभी के लिए डिजिटल साहित्य ने संभावनाओं के लिए नए द्वार खोले हैं। उक्त उद्गार वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल एवं ख्यात ब्लॉगर व साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव ने आज़मगढ़ साहित्य महोत्सव में 'डिजिटल युग में साहित्य पर परिचर्चा' सत्र को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। हरिऔध कला केंद्र, आज़मगढ़ में आयोजित तीन दिवसीय 'आज़मगढ़ साहित्य महोत्सव' (23-25 फरवरी) के दूसरे दिन आयोजित सत्र को संबोधित करते हुए पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि, हिन्दी और अन्य भाषाओं में साहित्य के विकास के लिए केवल सूचना प्रौद्योगिकी, आधुनिक तकनीकी एवं नवाचारी विचारों को मूर्त रूप देना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि निरंतर विकासमान डिजिटल प्रौद्योगिकी के साथ इनके अनवरत उन्नयन एवं संवर्द्धन की गति को बढ़ाने की भी आवश्यकता है। वैश्वीकरण के दौर में वेबसाइट्स, ई-बुक्स, ई-पत्रिका, वेब-पत्रिका, ब्लॉग, सोशल मीडिया, पॉड कॉस्टिंग, चैट जीपीटी, मशीन लर्निंग, कृत्रिम मेधा ने साहित्य को नये क्षितिज प्रदान किए हैं। साहित्य मनुष्य की सोच को व्यापक बनाता है, ऐसे में जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा साहित्य को डिजिटल बनाया जाए ताकि वह सर्वसुलभ हो सके। श्री यादव ने कहा कि, लिखे हुए साहित्य की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी। इंटरनेट की आभासी दुनिया असंभावित संभावनाओं की ओर ले जा रही है, पर मात्र गूगल कंटेंट के भरोसे न रहकर अपनी स्मृति और मौलिकता का लोप होने से बचाना होगा। श्री यादव ने कहा कि, डिजिटल मीडिया से लेकर सोशल मीडिया ने साहित्य में लोकतंत्र और संवाद को बढ़ावा दिया है, पर इसकी आड़ में पनपते फेक न्यूज और गलत तथ्यों से भी सतर्क रहने की जरूरत है। साहित्य समाज के लिए सदैव रोशनी का कार्य करता है, ऐसे में डिजिटल युग में साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों की भूमिका और भी बढ़ जाती है। कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि आज़मगढ़ रचनात्मक रूप से सदैव उर्वर रहा है। देश ही नहीं विदेशों में भी यहां के लोग अपनी प्रतिभा का परचम फहरा रहे हैं। ऐसे में डिजिटल सहित्य के माध्यम से आज़मगढ़ की विभूतियों, प्रमुख स्थानों, रचना कर्म और उपलब्धियों के बारे में विस्तृत चर्चा करते हुए नई पीढ़ियों को भी जोड़ा जा सकता है। उन्होंने राहुल सांकृत्यायन का जिक्र करते हुए कहा कि जिस दौर में इंटरनेट नहीं था, बौद्ध साहित्य की खोज में उन्होंने पूरी दुनिया का चक्कर लगाया और ज्ञान के भंडार को संरक्षित किया। आज़मगढ़ के अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) भगत आज़ाद ने आभार ज्ञापन किया। उन्होंने कहा कि आज़मगढ़ के साहित्यिक अवदान को डिजिटलीकरण करने के लिए भी पहल की जा रही है। इस अवसर पर जगदीश बर्नवाल कुंद, डॉ. प्रवेश सिंह,घनश्याम यादव, डॉ. जयप्रकाश यादव ने भी विचार रखे। डॉ गीता सिंह, डॉ अखिलेश चन्द्र सहित तमाम साहित्यकार, बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।