वातावरण, तापमान में गिरावट एवं बूंदाबांदी की स्थिति में आलू की फसल पिछेती झुलसा रोग के प्रति अत्यन्त संवेदनशील है। प्रतिकूल मौसम विशेषकर बदलीयुक्त बूंदा-बांदी एवं नम वातावरण में झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है तथा फसल को भारी क्षति पहुँचती है। यह जानकारी जिला उद्यान अधिकारी सी०पी०अवस्थी ने दी l उन्होंने बताया है कि पिछेती झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियां सिरे से झुलसना प्रारम्भ होती है, जो तीव्र गति से फैलती है। पत्तियों पर भूरे काले रंग के जलीय धब्बे बनते है तथा पत्तियों की निचली सतह पर रूई की तरह फफूंद दिखाई देती है। बदलीयुक्त 80 प्रतिशत से अधिक आर्द्र वातावरण एवं 10-20 डिग्री तापकम में इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता है और 2 से 4 दिनों के अन्दर सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है।आलू की फसल को पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिए मैन्कोजेब अथवा प्रोपीनेब 2-2.5 किलोग्राम का 800 से 1000 ली० पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। जिन खेतों में पिछेती झुलसा रोग का प्रकोप हो गया है तो ऐसी स्थिति में डाईमेथोमार्फ 1.0 ग्राम+मैन्कोजेब का 2.0 ग्राम (कुल मिश्रण 0.3 प्रतिशत, अर्थात 3 ग्राम प्रति लीटर पानी) या साइमोक्सानिल+मैन्कोजेब दवा का 3 ग्राम प्रति लीटर घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार उपरोक्त फंफूदनाशकों का पुनः 7 से 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव दोहरायें। श्री अवस्थी ने बताया है कि आम की अच्छी उत्पादकता सुनिश्चित करने हेतु गुजिया कीट (मैंगो मिलीबग) से बचाया जाना अत्यन्त आवश्यक है। इस कीट से आम की फसल को काफी क्षति पहुँचती है। इसके शिशु कीट (निम्फ) को पेड़ों पर चढ़ने से रोकने के लिए माह दिसम्बर में आम के पेड़ के मुख्य तने पर भूमि से 30-50 सेन्टीमीटर ऊँचाई पर 400 गेज की पॉलीथीन सीट की 25 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी को तने के चारों ओर लपेट कर उपर व नीचे सुतली से बांध कर पॉलीथीन सीट के ऊपरी व निचले हिस्से पर ग्रीस लगा देना चाहिए। कीट के नियंत्रण हेतु जनवरी के प्रथम सप्ताह से 15-15 दिन के अन्तर पर दो बार क्लोरोपाइरीफास (1.5 प्रतिशत) चूर्ण 250 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से तने के चारो ओर बुरकाब करना चाहिए। अधिक प्रकोप की दशा में यदि कीट पेड़ों पर चढ़ जाते है तो ऐसी स्थिति में कार्बोसल्फान अथवा डायमेथेएट 20 मि०ली० दवा को प्रति ली० पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।