नई दिल्ली-: उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहित विधेयक में वैध और नाजायज बच्चों के बीच के अंतर को समाप्त कर दिया गया है। : उत्तराखंड में अब कोई भी बच्चा 'नाजायज' नहीं कहलाएगा। उत्तराखंड सरकार ने मंगलवार को समान आचार संहिता विधेयक पेश किया है जो कभी भी कानून के रूप ले सकता है। उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में तैयार इस संहिता में कई विशिष्ट प्रावधान किए हैं। जिससे देश की दिशा और दशा दोनों की बदलने जा रही है। उत्तराखंड पहला ऐसा राज्य होने जा रहा है जो समान आचार संहिता को कानून बनाकर लागू करने की तैयारी में है। आइए आपको बताते हैं क्या क्या है प्रावधान... अब कोई 'नाजायज' नहीं उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहित विधेयक में वैध और नाजायज बच्चों के बीच के अंतर को समाप्त कर दिया गया है। फिर चाहे वह किसी भी धर्म से संबंध रखते हों। विधेयक में गोद लिए गए, सरोगेसी या अन्य प्रजनन तकनीक के माध्यम से पैदा हुए बच्चों को अन्य जैविक बच्चों के समान माना गया है। संपत्ति में समान अधिकारी उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहित विधेयक में बेटे और बेटी दोनों के लिए पैतृक संपत्ति में समान रूप से अधिकार सुनिश्चित करने का प्रावधान किया है। कई परिवार अपनी बेटियों को संपत्ति नहीं देते थे। उनका अधिकार समाप्त कर देते थे। इसके कारण यह प्रावधान विस्तृत रूप से किया गया है। लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य उत्तराखंड पहला ऐसा राज्य होगा जहां लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण होगा। सबसे बड़ी बात यह है 21 वर्ष से पहले अगर कोई लड़की या लड़का ऐसा करना चाहेगा तो उसे माता और पिता की सहमति लेना अनिवार्य होगा। पंजीकरण में अगर गलत जानकारी दी तो 3 माह की जेल और 25 हजार रुपए जुर्माना होगा। पंजीकरण न कराया तो छह माह की जेल और 25 हजार जुर्माना होगा। अब तलाक की एक प्रक्रिया तलाक के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में अलग-अलग कानून हैं। विधेयक में इसे एक कर दिया गया है। इसके साथ ही बहुविवाह को खत्म कर दिया गया है। सभी धर्मों की लड़कियों के लिए समान वैवाहिक उम्र और तलाक के लिए एक समान प्रक्रिया रखी गई है। मुस्लिम महिलाओं के लिए हलाला और इद्दत जैसी इस्लामी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगेगा।