बदलते रंगों का मौसम-विजय गर्ग
बदलाव प्रकृति का नियम है और इस बदलाव की प्रक्रिया में ऋतुओं का चक्र हर नए मौसम की नई उमंगों और नई तरंगों के साथ मानवीय मन-मस्तिष्क और हृदय में नई ऊर्जा का संचार करता है। प्राकृतिक रंगों और बदलते मौसम का यह खूबसूरत दृश्य संपूर्ण धरती और सौरमंडल को रंगों के इस उत्सव में भिगो देता है। जब से मनुष्य का जन्म हुआ है, तब से रंगों की प्रक्रिया, बदलते मौसम और ऋतुओं के इस चक्र से पूरा जहान रंगों के आनंद में बह जाता है। बदलते मौसम की यह प्रक्रिया और रंगों की रूमानी चादर इस तरह से बदलती है कि धरती का हर लम्हा हर मौसम में नया लगता है। इसका मर्म यह है कि धरती पर रहने वाले सब पशु- पक्षी और इंसान अपनी जिंदगी के लिए रंगों के आवरण में रंग कर मौसम का लुत्फ लेकर अपने आप को हर मौसम के लिए जिंदा रख सकें। जिंदा रहने और आगे बढ़ने का एक नया रास्ता मनुष्य को नई सांसों की पूंजी से भर देता है।
खूबसूरती यह है कि जिंदगी और रंगों की इस अद्भुत दौड़ में यह सब कुछ ऐसे होता जाता है और इस तरह जीवन में और मौसम के साथ आता है कि हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि किस वक्त कौन – सा मौसम और ऋतुओं का चक्र और कौन – सा मौसमी रंग बदल गया है। गर्मी, सर्दी, बारिश और बसंत का मौसम आंख झपकते ही हमें नए जोश और उत्साह से भर देता है । यों दुनिया भर के साहित्य में मौसमों को प्रकृति और इंसान के बीच बदलाव की प्रक्रिया को खूबसूरत शब्दों में बयान किया गया है। कहते हैं कि हर सुबह बदलते मौसम सूचक है। सूर्य की पहली किरणें हर नए रंग से हमें इस धरती पर रहने वाले जीव-जंतु, पौधे, वनस्पति को रोमांस से भर देती हैं। यही धूप का साया है और यही रंगों की आमद है, जो जिंदगी की निशानी है । पर इन बदलते मौसम में रंगों का मौसम कैसे धीरे से हमारे जीवन में बिना आहट के आ जाता है कि हम अंदाजा भी नहीं लगा पाते। अक्तूबर में हल्की गर्मी की ढलान से थकी हुई धूप के बाद नवंबर में गुलाबी ठंड की दस्तक भी अब दिसंबर के सफर पर चल पड़ी है। यही शरद ऋतु का नजारा और रंग ऋतुओं के रंगों की महकती हुई हवा नई जिंदगी और नए समय की प्रभात का एक नया रंग है। रंगों का यह मौसम है जो जिंदगी को अपने रंग से ढक देता है ।
बदलते मौसम में सही से प्रकृति के जादू का मौसम शुरू हो रहा है। विज्ञान की दुनिया में धरती के जिन मुद्दों को लेकर इन दिनों बहस है कि बदलते हुए मौसम और बदलते हुए रंगों में से जिस तरह से हमने पर्यावरणीय तत्त्वों को लेकर पूरी धरती को जहरीली गैसों से भर दिया है, उससे हमारे जीवन पर इन प्राकृतिक रंगों के ऐसे धब्बे पड़ गए हैं, जिनसे हमारा जीवन और जीने के लिए साफ हवा – पानी प्रायः खत्म होता जा रहा है।
हमने प्रकृति के दिए हुए सारे रंगों को नष्ट कर दिया है। बदलते मौसम और प्रकृति के इन रंगों के पर्यावरण मुद्दों ने रंगों की प्रक्रिया को इतना बिगाड़ दिया है कि अब हमारे जीने पर ही प्रश्नचिह्न लग गया है। इस समय सच यह है कि हमने पूरी दुनिया के जल, जंगल, जीवन और समंदर को भी जिस तरह से दूषित कर दिया है, वह दूसरे ही रंग की कहानी कहता है।
रंगों का यह मौसम एक नई शुरुआत का मौसम है और यह धीरे से हमारे जीवन में हल्की गुलाबी सर्दी के आकाश में नए रंगों की आमद और उसकी आभा के रंग है और और शरद ऋतु के आते-जाते चारों तरफ धरती पर लाल, नारंगी, पीले और गहरे हरे रंग में नजर आती धरती पर छाई हुई चादर पहाड़ी और नीम पहाड़ी इलाकों में पूरी दुनिया में एक-सी धवल दृश्य को दिखाती है।
रंगों के प्राकृतिक बदलाव की सत्ता को भी देखा जा सकता है और हम अंदाजा नहीं लगा सकते कि यह कौन चित्रकार है, कौन इसको रखता है और किस तरह से इस धरती को रंगों के शृंगार से हल्की ठंड और गुलाबी सम्मोहन की धूप से पेड़ पौधों में और वनस्पति में आदमी को नए क्षितिजों की ओर देखने के लिए एक नए उत्साह और उमंग से भर देता है। कश्मीर और पूर्वोत्तर में जिस तरह की वनस्पतियां होती हैं, वे अद्भुत हैं। वह स्विट्जरलैंड के बर्फ से लदे पहाड़ों से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत है । हमारे कश्मीर में इस मौसम को हरुद कहा गया है और सूफियों से लेकर नए कवियों तक लिखने वालों ने इस मौसम की खूबसूरती को बयां किया है। कश्मीर के लोग जानते हैं कि इन दिनों वहां पर बहुतायत में पाए जाने वाले मेपल के पेड़ों के पत्ते किस तरह रंग बदलते हैं और भूरे रंग से वहां की पहाड़ियां और धरती ढक जाती हैं।
वहां के आदि सूफियों की कविता में इसे जादुई मौसम का नाम दिया गया है और यह मौसम का जादू ही होता है जो आदमी को नए मरहलों की तरफ और नई ऊंचाइयों की तरफ देखने का उत्साह देता है। दुनिया भर के साहित्य में मौसमों के बदलाव को प्रकृति का जादू कहा गया है। सवाल है कि हम इन रंगों से क्या कर रहे हैं। अगर हमने जल, जंगल, जीवन, आकाश, पहाड़ और इस धरती को नहीं बचाया, तो यही रंग बदरंग होकर हमारी जीवन लीला को समाप्त कर देंगे। अभी भी समय है कि हम हवा, पानी और पहाड़ को बचाकर इस जमीन पर जिंदा रहने के अवसर को बचा लें। धरती के रंगों से विमुख होना शायद हमें इतना महंगा पड़ जाएगा… हम अपनी और हवा से महरूम हो जाएंगे।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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