राज्यपाल ने छात्र-छात्राओं को बधाई दी तथा उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए कहा कि उपाधि प्राप्ति केवल एक शैक्षिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाने का भी प्रतीक है। उन्होंने छात्रों को जीवन में कर्तव्यनिष्ठा का पालन करने की प्रेरणा दी। राज्यपाल जी ने संस्कृत शिक्षा की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए कहा कि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय प्राचीन भारत की सांस्कृतिक और शैक्षिक धरोहर को जीवंत रखने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
उन्होंने कहा कि संस्कृति की विरासत संस्कृत भाषा में संचित और संरक्षित है। इसीलिए संस्कृत भाषा में उपलब्ध सांस्कृतिक चेतना का प्रसार करना राष्ट्र सेवा है। उन्होंने कहा कि भारत के प्रतिष्ठा के दो स्तम्भ हैं। प्रथम संस्कृत व द्वितीय संस्कृति। संस्कृत भाषा देववाणी है तो देशवाणी भी है। उन्होंने कहा कि आदर्श जीवन शैली संस्कृत के प्राचीन ग्रन्थों में बताई गई है। उन्होंने संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों का अनुवाद हिन्दी में करने का निर्देश देते हुए कहा कि इन ग्रन्थों में आदर्श जीवन शैली बताई गई है, जिसका लाभ आम-जनमानस को मिलना चाहिए, जिससे वे ऋषि, मुनियों के प्राचीन ज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
राज्यपाल जी ने सरस्वती भवन पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों के बारे में बताया कि इनमें अनमोल ज्ञानराशि निहित है। उसके संरक्षण का कार्य भी भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन के द्वारा बहुत सुन्दर प्रयास के साथ किया जा रहा है, जिसको और अधिक गति देने के लिए राज्यपाल जी ने कम्प्यूटरीकरण करने का भी निर्देश दिया और कहा कि इन पाण्डुलिपियों का प्रकाशन कराकर व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए।
इस अवसर पर उन्होंने बच्चों को भारत का भविष्य बताते हुए कहा कि 8 साल तक के बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहिए, जिससे उनका भविष्य उज्जवल हो सके, क्योंकि इस उम्र के बच्चों की याददाश्त तेज होती है। उन्होंने विश्वविद्यालय के आचार्यों को निर्देश देते हुए कहा कि संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए संस्कृत के शब्दों की छोटी किताब प्रकाशित की जाए।
इस अवसर पर राज्यपाल जी ने विश्वविद्यालय के विशिष्ट अतिथि गृह का उद्घाटन किया तथा सभी उपाधियों, अंक-पत्रों तथा प्रमाण-पत्रों को ऑनलाइन डिजीलॉकर में अपलोड किया। उन्होंने विश्वविद्यालय के द्वारा गोद लिए गए पांच गावों के विद्यालयों में विभिन्न तरह की प्रतियोगिताओं निबन्ध, चित्रकला, कहानी लेखन, कथावाचन आदि के विजेताओं को पुरस्कृत किया तथा विजेता गांव के प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्यों को भी सारस्वत उपहार एवं स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। उन्होंने चंदौली जनपद के अधिकारी एवं राजभवन के सहयोग से आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों को आंगनवाड़ी किट तथा साड़ी प्रदान किया।
मुख्य अतिथि प्रो. अनिल डी. सहस्रबुद्धे ने अपने प्रेरक संबोधन में छात्रों से प्राचीन संस्कृत परंपराओं और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने छात्रों को अपने ज्ञान का समाज और राष्ट्र के विकास में सार्थक योगदान के लिए उपयोग करने का आह्वान किया और संस्कृत के महत्व को आज के संदर्भ में समझने पर जोर दिया।
विशिष्ट अतिथि योगेन्द्र उपाध्याय ने संस्कृत भाषा को भारतीय इतिहास और संस्कृति का आधार बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संस्कृत की शिक्षा से भारत को विश्व मंच पर एक नई पहचान मिल सकती है। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उच्च शिक्षा में सुधार के लिए किए जा रहे विभिन्न प्रयासों पर भी प्रकाश डाला।
सारस्वत अतिथि रजनी तिवारी ने अपने संबोधन में विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत शिक्षा न केवल महिलाओं को सशक्त बना सकती है, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का माध्यम भी बन सकती है। उन्होंने विश्वविद्यालय की नारी शिक्षा में अग्रणी भूमिका की सराहना की।
कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के संस्कृत भाषा और भारतीय शास्त्रीय परंपराओं के संरक्षण के प्रति समर्पण को दोहराया। उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे अपने ज्ञान और कौशल का उपयोग मानवता की सेवा में करें और विश्वविद्यालय के आदर्शों को सजीव रखें।
इस अवसर पर आयुष राज्यमंत्री दयाशंकर मिश्र, जिलाधिकारी चंदौली निखिल टीफू, मुख्य विकास अधिकारी संतोष कुमार श्रीवास्तव, विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद् एवं विद्यापरिषद के सदस्यगण शिक्षकगण, छात्र-छात्राएँ, विभिन्न विद्यालयों से आए बच्चे, आंगनवाड़ी कार्यकत्रियां आदि गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।