यदि आप भगवाधारी हैं तो भले ही आप योग का प्रचार करें या आयुर्वेद के नाम पर धंधा,भले ही आपको अदालतें डाटें -फटकारें किन्तु सरकार का समर्थन आपको लगातार हासिल होता रहेगा ,क्योंकि आप सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने वालों में से एक हैं। आपके सौ खून माफ़ हो सकते है। देश में देखते ही देखते योग से आयुर्वेद की दुनिया में शीर्ष पर पहुंचे पतंजलि उद्योग के प्रमुख स्वामी रामदेव का मामला कुछ ऐसा ही है। बाबा रामदेव बहुत पुराना योगवतार नहीं है। कोई दो दशक हुए हैं उन्हें योग और आयुर्वेद के धंधे में उतरे हुए। उन्होंने अपनी आरंभिक लोकप्रियता को भुनाने के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ गांधीगीरी भी की,सलवार पहनकर भागे भी । राजनीतिक दल भी बनाया लेकिन उनके नसीब में सियासी सुख लिखा नहीं था । हारकर वे योग और आयुर्वेद को ही ठिकाने लगाने के धंधे में उत्तर गए। बाबा रामदेव की पतंजलि आज देश की प्रमुख आयुर्वेद उत्पादक कंपनियों में से एक है। पतंजलि का राजस्व चन्द्रमा की सोलह कलाओं की तरह लगातार बढ़ रहा है और ये सब सरकार की कृपा की लीला है। इसमें कौन लीलावती है और कौन कलावती ये समझना बहुत कठिन काम नहीं है। बाबा रामदेव आजकल अपनी राजनितिक गतिविधियों की वजह से नहीं बल्कि अपनी भ्रामरी [भ्रम फ़ैलाने का अभियान ] की वजह से चर्चा में हैं और चिकित्सा पद्यतियों को लेकर देश में भ्रम फ़ैलाने के मामले में देश की सबसे बड़ी अदालत से लगातार डाट- फटकार खा रहे हैं। अदालत के ऊपर उनके भगवा रंग का असर नहीं हुआ । उनका योग और आयुर्वेद भी अदालत में काम नहीं आया। वे दोषी पाए गए और उनके द्वारा दिए गए हलफनामों को भी अदालते ने के बार नहीं बल्कि दो बार ठुकरा दिया। इसके बावजूद बाबा रामदेव पर सरकार की कृपा बनी हुई है। देश की सरकार जिसके ऊपर भी कृपावंत होती है उसकी बल्ले-बल्ले हो जाती है । चाहे अडानी हों या बाबा सरकार की कृपा से दिन दूनी,रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं। बाबा का पतंजलि समूह वित्त वर्ष 2020-21 में 30,000 करोड़ रुपये के पार पहुंच गया। पिछले साल के वित्तीय नतीजों से पता चलता है कि समूह के राजस्व को रफ्तार देने के लिए इंदौर की कंपनी रुचि सोया का अधिग्रहण कितना महत्त्वपूर्ण था। समूह की विभिन्न कंपनियों के बीच रुचि सोया की 16,318 करोड़ रुपये की बिक्री ने पतंजलि के कुल राजस्व में 54 फीसदी का योगदान किया। कंपनी ने वित्त वर्ष 2020 में 13,118 करोड़ रुपये का राजस्व दर्ज किया था। बाबा रामदेव ने खुद कहा कि समूह की प्रमुख कंपनी पतंजलि आयुर्वेद ने हाल तक अपने कारोबार में 8 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है और वित्त वर्ष 2021 में उसने 9,784 करोड़ रुपये का राजस्व दर्ज किया। पतंजलि एग्रो समूह की तीसरी सबसे बड़ी कंपनी बनकर उभरी और वित्त वर्ष 2021 में 1,600 करोड़ रुपये का राजस्व दर्ज किया। इसके बाद समूह की औषधि बनाने वाली इकाई दिव्य फार्मेसी का स्थान रहा । बाबा आये तो थे देश को मुफ्त में योग के जरिये स्वस्थ्य करने का संकल्प लेकर किन्तु बन बैठे कारोबारी। हमारे मध्यप्रदेश समेत देश में जहाँ भी डबल इंजिन की सरकारें हैं वहां बाबा पर सरकार की जमकर कृपा बरस। करोड़ों की जमीन कौंडियों के दाम मिली वो भी पलक झपकते ही। बाबा पलकें झपकाने में सिद्धस्त हैं। बाबा भाजपा सरकार की नजरों में पहले ही साल में चढ़ गए । 2014 में मोदी जी के सत्ता में आते ही बाबा को भाजपा शासित राज्यों में लगभग 300 करोड़ रूपये की छोट तो केवल जमीनों के मामले में ही मिल गयी। अकेले असम में बाबा को सरकार ने 1200 एकड़ जमीन दे दी ताकि वे वहां गौशाला खोलकर गाय का घी बना और बेच सकें। बाबा की तरक्की से उनके प्रतिद्वंदी चिढ़ते ही होंगे। इस देश में सदियों से डाबर,बैद्यनाथ, धूतपापेश्वर जैसी आयुर्वेद की नामचिन्ह कंपनियां थीं लेकिन वे सरकार का संरक्षण नहीं पा सकीं। बाबा आयुर्वेद को पीछे छोड़ आटा-दाल,क्रीम,पावडर, साबुन-सोडा तक बेचने लग। महर्षि पतंजलि बाबा की तरक्की देखकर खुश होते होंगे या रोते होंगे ये तो पता नहीं किन्तु आजकल बाबा परेशान हैं जबकि उनके ऊपर सरकार मेहरबान है। सुप्रीम कोर्ट ने बाबा को भ्रामक विज्ञापन दिखने के मामले में दोषी पाया और फटकारा । बाबा ने कोर्ट को धता दिखते हुए जब अपने भ्रामक विज्ञापन नहीं हटाए और झूठा हलफनामा दे दिया तो कोर्ट ने उसे ठुकरा दिय। बाबा को परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गयी है अदालत की और से। बाबा ने विश्वव्यापी कोरोना संकट के दौरान कोरोनिल बनाकर रातों-रात करोड़ों रूपये कूट लिए जबकि उसका पूरा दवा भ्रामक निकला । लेकिन बाबा के साथ कोरोनिल के लोकार्पण समारोह में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्द्धन बैठे थे इसलिए किसी ने कोई सवाल नहीं किया। बाबा का हिंदुत्व केंद्रित आयुर्वेद हमेशा उनका सहयक बना रहा,आज भी केंद्र की कृपा सिर्फ इसीलिए बाबा के ऊपर है। हमारे साथी और मित्र स्वर्गीय प्रदीप चौबे कहते थे - जिस पै देवी का हस्त है प्यारे ,उसका पिल्ला भी मस्त है प्यारे । बाबा तो बाबा हैं उनका मस्त होना स्वाभाविक है। सरकार की कृपा इसकी सबसे बड़ी वजह है। बाबा दोनों हाथों से देश को लूट रहे हैं। उपभोक्ता और अंधभक्त लगातार हिंदुत्व की चाशनी में सनी पतंजलि के उत्पादों को खरीदकर बाबा के राजस्व में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत भी बाबा को जेल भेजने से कटरा रही है ,अन्यथा एक के बाद एक हलफनामा मांगने का क्या अर्थ हो सकता है ? बाबा की जगह कोई दूसरा होता तो अरविंद केजरीवाल की तरह जेल के सींखचों के पीछे न होता ?