लखनऊ:‘जोशांदा’ एक यूनानी हर्बल पेय है, जो नजला-जुकाम एवं फ्लू को ठीक करने में अत्यन्त कारगर है। यह जोशांदा काढ़ा के रूप में प्रयोग किया जाता है, जो सदियों से हर घर में पिया जाता रहा है। इधर कई दशक से नजला-जुकाम से तुरन्त आराम के लिए लोग एंटी एलर्जिक एवं जीवाणुरोधी आधुनिक औषधियों का प्रयोग कर लेते हैं, जिससे फौरी तौर पर तो आराम मिल जाता है किन्तु श्वास नली एवं फेफड़ों में बलगम जमा रह जाता है, जिससे कालान्तर में अवरोध उत्पन्न होने के कारण सांस फूलने की तकलीफें जैसे-ब्राॅकियल अस्थमा एवं क्रानिक आबस्टेªक्टिव पल्मोनरी डिजीज (ब्व्च्क्) जैसी असाध्य रोगों की संख्या दिनों-दिन बढ़ रही है। इस समय जब मौसम परिवर्तन हो रहा है और अधिकांश लोग सर्दी-जुकाम आदि परेशानियों से ग्रसित हो रहे हैं तो उन्हें इस काढ़ा के सेवन के सम्बन्ध में जानकारी देना सामयिक है। जोशांदा में खत्मी के बीज, सपिस्ता के सूखे फल, खुब्बाजी के बीज, उन्नाब के सूखे फल, मुलेठी की सूखी कन्द (जड़), गुले बनफ्सा एवं गावजबा की सूखी पत्तियां आदि सात यूनानी औषधियों का मिश्रण होता है। जोशांदा आसानी से बाजार में उपलब्ध है। इसके 10 ग्राम से 15 ग्राम तक मिश्रण को 2 कप पानी में उबालें, जब आधा कप शेष बचे तो छानकर गुनगुना पियें। इसे सुबह खाली पेट एवं रात्रि में सोने से पहले लेना मुफीद रहता है। जोशांदा के गुनगुने पेय में जीवाणु एवं विषाणुरोधी गुण होने के कारण यह गले की खरास, खांसी, बलगम का बनना, सर्दी के कारण सीने की जकड़न तथा बुखार को ठीक करता है। यह श्वसन तंत्र में सांस संबंधी अंग जैसे-नाक, स्वर यंत्र, श्वास नलिका और फुफ्फुस में जमा बलगम को साफ करता है। जोशांदा को 3 सप्ताह से 6 सप्ताह तक नियमित लेने से साइनोसाइटिस, फैरेन्जाइटिस हरदम के लिए ठीक होगी वहीं पुरानी खांसी, दमा (ब्राॅकियल अस्थमा) में आराम मिलेगा तथा बार-बार होने वाले नजला-जुकाम से निजात दिलाएगा। इसे हर्बल चाय के रूप में शरीर की थकान एवं शरीर के दर्द को दूर करने के लिए भी पिया जाता है